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शनिवार, 25 मई 2019

नेहरू और इंदिरा के बाद मोदी ने रचा.................

नेहरू और इंदिरा के बाद मोदी ने रचा इतिहास, पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी


दहकती ख़बरें - नयी दिल्ली- पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के लोकतांत्रिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है. नेहरू और इंदिरा के बाद मोदी पूर्ण बहुमत के साथ लगातार दूसरी बार सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाले तीसरे प्रधानमंत्री बन गये हैं.गुरुवार को देशभर में लोकसभा चुनाव के लिए मतगणना अभी जारी है और अभी तक मिले रुझान बता रहे हैं कि मोदी की कमान में भगवा पार्टी 17वीं लोकसभा में पूर्ण बहुमत के लिए जरूरी 272 के आंकड़े तक आसानी से पहुंच जायेगी. 2014 में हुए आम चुनाव में भाजपा ने लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 282 सीटों पर जीत हासिल की थी. देश में आजादी के बाद 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू करीब तीन चैथाई सीटें जीते थे. इसके बाद 1957 और 1962 में हुए आम चुनाव में भी उन्होंने पूर्ण बहुमत के साथ जीत दर्ज की थी. चूंकि देश में आजादी के बाद 1951 में पहली बार आम चुनाव हुए थे तो इस प्रक्रिया को पूरा करने में करीब पांच महीने का समय लगा था. हालांकि, ये वो दौर था जब कांग्रेस की अजेय छवि थी और भारतीय जनसंघ, किसान मजदूर प्रजा पार्टी और अनुसूचित जाति महासंघ और सोशलिस्ट पार्टी जैसे दलों ने आकार लेना शुरू कर दिया था.
1951-52 चुनाव में कांग्रेस ने 489 सीटों में से 364 सीटों पर जीत हासिल की थी और उस समय पार्टी के पक्ष में करीब 45 फीसदी मत पड़े थे. अब अगर बात 1957 की करें तो नेहरू फिर से चुनाव मैदान में थे. देश एक कठिन दौर से गुजर रहा था क्योंकि प्रधानमंत्री नेहरू को 1955 में हिंदू विवाह कानून पास होने के बाद पार्टी के भीतर और बाहर दक्षिणपंथी विचारधारा से लड़ना पड़ रहा था. देश में विभिन्न भाषाओं को लेकर भी एक विवाद छिड़ा हुआ था. इसका परिणाम यह हुआ कि 1953 में राज्य पुनर्गठन समिति के गठन के बाद भाषाई आधार पर कई राज्यों का गठन किया गया. खाद्य असुरक्षा को लेकर भी देश में अलग बवाल मचा हुआ था. लेकिन, इन सारे विपरीत हालात के बावजूद नेहरू ने 1957 के चुनाव में 371 सीटों के साथ शानदार जीत हासिल की. कांग्रेस की वोट हिस्सेदारी भी 1951-52 में 45 फीसदी से बढ़कर 47.78 फीसदी हो गयी.1962 के आम चुनाव में भी नेहरू ने लोकसभा की कुल 494 सीटों में से 361 सीटों पर शानदार विजय हासिल की. आजाद भारत के 20 साल के राजनीतिक इतिहास में आखिरकार कांग्रेस पार्टी का जलवा बेरंग होना शुरू हुआ और वह छह राज्यों में विधानसभा चुनाव हार गयी. इन छह राज्यों में से तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस सबसे पहले हारी थी. लेकिन, 1967 में नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी लोकसभा की कुल 520 सीटों में से 283 सीटें जीतने में कामयाब रहीं. आम चुनाव में इंदिरा गांधी की यह पहली जीत थी. 1969 में इंदिरा ने पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया जिसे कांग्रेस (ओ) के नाम से जाना गया जिसकी कमान मोरारजी देसाई संभाल रहे थे. इसी दौर में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया जिसने भारतीय मतदाताओं के एक बड़े हिस्से पर असर किया. इसी का नतीजा रहा कि इंदिरा गांधी 1971 के आम चुनाव में 352 सीटें जीत गयीं.अब 2010 और 2014 के दौर की बात करें जब संप्रग सरकार विभिन्न मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही थी. इसी दौरान भाजपा ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 के आम चुनाव में अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नामित कर दिया. देशभर में विकास के वादे के साथ नरेंद्र मोदी 2014में 282 सीटों पर जीत के साथ अपना पहला आम चुनाव पूर्ण बहुमत के साथ जीतने में सफल रहे.


शुक्रवार, 24 मई 2019

लोकसभा चुनाव में मिली हार की जिम्मेदारी.......

लोकसभा चुनाव में मिली हार की जिम्मेदारी लेकर


 राज बब्बर ने राहुल गांधी को भेजा इस्तीफा


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लखनऊ। लोकसभा चुनाव में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन को देखते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रमुख राज बब्बर ने पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को इस्तीफा भेजा है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि जनता का विश्वास हासिल करने के लिए विजेताओं को बधाई। यूपी कांग्रेस के लिए परिणाम निराशाजनक हैं। अपनी जिम्मेदारी को सफल तरीके से नहीं निभा पाने के लिए खुद को दोषी पाता हूं। उन्होंने कहा कि मैं नेतृत्व से मिलकर अपनी बात रखूंगा। उल्लेखनीय है कि, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस महज एक सीट रायबरेली जीत सकी है। फतेहपुर सीकरी से कांग्रेस के उम्मीदवार राज बब्बर को बीजेपी प्रत्याशी राजकुमार चाहर ने तीन लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव हरा दिया। पार्टी ने पहले उनको मुरादाबाद से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उन्होंने वहां से चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। इसके बाद फतेहपुर सीकरी से मैदान में उतरे। गौरतलब है कि, सिनेमा जगत से राजनीति में आए राज बब्बर 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल से जुड़े। बाद में वह जनता दल छोड़कर सपा में चले गए। 2006 में उन्हें सपा से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद 2008 में वह कांग्रेस पार्टी का हिस्सा बन गए।


शब-ए-कद्र का एहतिमाम करें: मौलाना खालिद रशीद

 


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शब-ए-कद्र का एहतिमाम करें: मौलाना खालिद रशी


लखनऊ। रमजानुल मुबारक के तीसरे जुमे को अपने खुतबे में नाजिम दारूल उलूम फंरगी महल मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली इमाम ईदगाह लखनऊ ने कहा कि अल्लाह के इंआमों में से एक इंआम रमजानुल मुबारक कामहीना है जिसमें एक एक नेकी का सत्तर से सात सौ गुना तक अल्लाह तआला अपने बंदों को सवाब देता है, इससे नेकी की एैसी फिजा और माहौल बन जाता है कि बंदे के दिल का झुकाव बुराई की तरफ कम और अच्छाई की तरफ ज्यादा से ज्यादा हो। इसी मुबारक महीने में रोज़े जैसे अहम्तरीन रुक्न-ए-इस्लाम को फर्ज किया कि इसका दिन रोज़े की हालत में गुज़ारा जायेगा, इस में रोज़ा रखने का बदला अपने लिए खास़ किया। इसका पहला अशरा रहमत, दूसरा अशरा मग़फिरत और तीसरा अशरा जहन्नम से छुटकारा है। रमजानुल मुबारक के इस महीने में नेक अमल को आसान बनाने के लिए शैतानों को कैद कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि कुरान मजीद में तीन तरह के विषय हैं। एक अकीदा कि खुदा पाक पूरी दुनिया का मालिक है। उसने दुनिया को पैदा करके उसको दूसरों के हवाले नही कर दिया है बल्कि वह हर समय पूरी कायनात को अपनी मर्जी के मुताबिक़ चला रहा है। इस लिए हम सब को अपनी जरूरतें इसी एक मालिक के सामने रखनी चाहिएं। उसका बेहतरीन तरीका दुआ है। दुआ से बन्दे में खाक़सारी पैदा होती है जो खुदा पाक को बहुत पसंद है और दुआ न करने से तकब्बुर पैदा होता है जो खुदा पाक को सबसे अधिक नापसंद है। मौलाना ने कहा कि इस माह की बहुत बड़ी बरकत है कि हम ने कुछ रातों में कुरान मजीद सुना। हम पर यह जिम्मेदारी है कि कुरान मजीद के अहकाम से वाकिफ हों। उसके हुकमों पर अमल करें। बाक़ी बचे हुए दिनों में फर्ज, सुन्नत, नवाफिल, तरावीह और तहज्जुद की पाबन्दी करें। शब-ए-कद्र का एहतिमाम करें। अपने माल की जकात निकालें, सदका फित्र अदा करें ताकि गरीब भी ईद की खुशियाँ हासिल कर सकें। उन्होंने कहा कि यह महीना हमदर्दी और गमख्वारी का महीना है। इस का हम अमली सुबूत दें।


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पूरे देश में जीती बीजेपी, लेकिन 25 साल बाद हुई मनोहर पर्रिकर की सीट पर हार


गोवा की पणजी विधानसभा सीट बचाने में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विफल रही है। दिवंगत मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर की परंपरागत सीट पणजी पर 25 साल बाद भाजपा की हार हुई है। पर्रिकर के निधन के बाद खाली हुई सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के अतानासियो मोन्सेरात ऊर्फ बाबुश मोन्सेरात ने भाजपा प्रत्याशी सिद्धार्थ कुनकालेंकर को 1,758 मतों से शिकस्त दी है। मोन्सेरात को 8,748 मत मिले जबकि भाजपा प्रत्याशी 6,990 मत प्राप्त कर दूसरे स्थान पर रहे।


वहीं, आम आम आदमी पार्टी (आप) के वाल्मीकि नाइक और गोवा सुरक्षा मंच के प्रत्याशी सुभाष वेलिंग्कर को क्रमश: 236 और 516 मत मिले। राज्य की शिरोडा विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार सुभाष शिरोडकर महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के दीपक धवालिकर को 66 मतों से पराजित करने में कामयाब रहे। जीत हासिल करने के बाद मोन्सेरात ने कहा, "यह कांग्रेस पार्टी और विकास के लिए मतदान की जीत है। पणजी पिछले कई साल से विकास से वंचित रहा है।"


बिहार में NDA का क्‍लीन स्‍वीप, पहली परीक्षा में फेल हुए तेजस्वी

लोकसभा चुनाव की मतगणना के परिणामों की बात करें तो बिहार में राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को क्‍लीन स्‍वीप मिल चुका है। इससे विपक्षी महागठबंधन (Grand Alliance) खेमे में सन्‍नाटा छा गया है। साथ ही राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के बेटे तेजस्वी  यादव (Tejashwi Yadav) के नेतृत्‍व पर भी सवाल खड़े होते दिख रहे हैं। अब महागठबंधन की हार का ठीकरा तेजस्‍वी के सिर पर फूटना तय है।


एनडीए ने महागठबंधन पर बनायी बढ़त
लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) की मतगणना जारी है। अभी तक के परिणाम बताते हैं कि एनडीए ने विपक्षी महागठबंधन पर बढ़त बना ली है। बिहार की 40 सीटों में अधिकांश पर एनडीए की जीत का पलड़ा भारी है। इसके साथ ही राजद में तेजस्‍वी के नेतृत्‍व पर सवालिया निशान लगता दिख रहा है।


इमरान खान ने नरेंद्र मोदी को दी बधाई, साथ काम करने की इच्‍छा जताई


पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत में बड़ी चुनावी जीत पर भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी को बधाई दी है। आशा जताई है कि उनके साथ क्षेत्रीय शांति, स्थिरता, तरक्की और संपन्नता के लिए कार्य करने का मौका मिलेगा।


इमरान खान ने ट्वीट कर कहा- भाजपा की चुनावी जीत के लिए प्रधानमंत्री मोदी को बधाई देता हूं। उनके साथ दक्षिण एशिया की शांति और तरक्की के लिए काम करना चाहता हूं। उल्लेखनीय है कि भारत के चुनाव परिणाम का पाकिस्तान में बड़ी बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था। पाकिस्तान सरकार ने कई मसलों पर चुनाव परिणाम आने के बाद भारत से वार्ता शुरू करने की बात कही थी। इनमें दोनों देशों के बीच शांति वार्ता, वायु सीमा खोले जाने, करतारपुर कॉरीडोर निर्माण के मसले शामिल हैं। इमरान ने आशा जताई थी कि चुनाव में अगर भाजपा को जीत हासिल होती है तो कश्मीर मसले पर भारत के साथ वार्ता करके उसे सुलझाने की स्थितियां बनेंगी।


अमित शाह की रणनीति के आगे पश्चिम बंगाल और ओडिशा में ध्‍वस्‍त हुई विरोधियों की रणनीति


West Bengal and Odisha Election पश्चिम बंगाल और ओडिशा के अभेद्य के किले में कमल खिलाने की भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति सफल रही। पश्चिम बंगाल में भाजपा की जीत इसीलिए भी ऐतिहासिक है कि वहां भाजपा न तो कोई चेहरा था और न ही पार्टी की विचारधारा का कोई इतिहास था, उसके ऊपर ममता बनर्जी ने उसे रोकने के लिए सारी सीमाएं पार कर दी थी। इसी तरह भाजपा ओडिशा में भी विपक्ष की भूमिका में आ गई है। शाह की रणनीति का नतीजा है कि भाजपा को ओडिशा में 38 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 40 फीसदी वोट मिले, जबकि 2014 में क्रमश: 21 और 17 फीसदी वोट मिले थे।


लंबे समय तक वामपंथियों के गढ़ रहे पश्चिम बंगाल में भाजपा की बड़ी शक्ति के रूप में उभरने की कल्पना तक नहीं की जाती थी, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के सामने वामपंथी पार्टियों और कांग्रेस की स्थिति को देखते हुए अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में मजबूत विकल्प रूप में खड़ा होने का फैसला किया और अपने तीन-चार कुशल रणनीतिकारों को इस काम में लगा दिया।


पश्चिम बंगाल में पार्टी को खड़ा करने की कुशल रणनीति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि स्वाइन फ्लू होने के अमित शाह ने तय रैली को दो दिन के लिए आगे बढ़ा लिया, लेकिन अपनी जगह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बुलाने के सुझाव को खारिज कर दिया। शाह का मानना था कि शुरू में ही योगी आदित्यनाथ को पश्चिम पश्चिम बंगाल में उतार देने पर जनता के बीच गलत संदेश जाएगा और असली मुद्दे गौण हो जाएंगे।


पश्चिम बंगाल में शाह ने अपने दो विश्वस्त सहयोगियों महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और संयुक्त महासचिव संगठन शिव प्रकाश को जिम्मेदारी सौंपी। ये दोनों नेता पिछले तीन साल से लगातार प्रदेश का दौरा करते रहे। जिन्होंने धीरे-धीरे भाजपा के संगठन को बूथ स्तर से लेकर राज्य स्तर तक खड़ा किया। तृणमूल कांग्रेस की ओर से तमाम हिंसक हमलों के बावजूद वे अपने समर्थकों को यह भरोसा देने में सफल रहे कि भाजपा नेतृत्व उनके साथ खड़ा है।


इसी भरोसे ने भाजपा कार्यकर्ताओं तृणमूल से लड़ने की हिम्मत दी। पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या बांग्ला बोलने वाले नेतृत्व की कमी की थी। कभी ममता बनर्जी के करीबी रहे मुकुल राय को लाकर भाजपा ने इस कमी को पूरा किया। इसके बाद कई दलों के नाराज नेताओं को पार्टी में शामिल कर पार्टी में बांग्लाभाषी नेताओं की कमी दूर की गई। इसी तरह ओडिशा में भी पूर्व राज्य के पूर्व आइएएस व आइपीएस अधिकारियों के साथ-साथ बीजद के नाराज नेताओं को जोड़ा गया। इसके साथ ही बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी की गई।


पश्चिम बंगाल और ओडिशा में बूथ स्तर पर संगठन खड़ा करने के बाद भाजपा ने मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव प्रचार की आक्रमक नीति अपनाई। अमित शाह और मोदी की सबसे अधिक चुनावी रैलियों को इससे समझा जा सकता है। इसके साथ ही देश के दूसरे राज्यों से भी वरिष्ठ नेताओं को इन दो राज्यों में उतारा गया। जहां तृणमूल कांग्रेस की हिंसा से बचने के लिए भाजपा ने पश्चिम बंगाल में 'चुपचाप, फूल छाप' का नारा दिया। वहीं ओडिशा में 'राधे-कृष्ण' के नारे के सहारे मतदाताओं को समझाने की कोशिश की कि विधानसभा और लोकसभा में अलग-अलग पार्टियों को वोट देना है। राधे को लक्ष्मी बताते हुए हुए उनके आसन कमल को भाजपा के चुनाव चिह्न से जोड़ा गया, वहीं कृष्ण को शंख से जोड़ा गया, जो बीजद का चुनाव चिह्न है।


 


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